लखनऊ में आशा बहुओं का बड़ा आंदोलन, विधानसभा मार्च से पहले पुलिस ने रोका।

लखनऊ में आशा बहुओं का बड़ा आंदोलन, विधानसभा मार्च से पहले पुलिस ने रोका।
लखनऊ में मंगलवार को उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन के बैनर तले हजारों की संख्या में आशा बहुएँ अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर उतर आईं। प्रदेश के अलग–अलग जिलों से आई आशा कार्यकर्ताओं ने राजधानी लखनऊ के चारबाग स्थित रेल कोच रेस्टोरेंट के पास एकत्र होकर जोरदार प्रदर्शन किया। इस दौरान पूरा इलाका नारेबाजी और आंदोलन की आवाज़ों से गूंज उठा।
आशा बहुओं का यह प्रदर्शन लंबे समय से लंबित मांगों को लेकर किया जा रहा है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वे वर्षों से स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ बनकर काम कर रही हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्हें न तो स्थायी कर्मचारी का दर्जा मिला है और न ही उचित मानदेय। आशा बहुओं का आरोप है कि सरकार की ओर से बार-बार आश्वासन तो दिए जाते हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती।
प्रदर्शन में शामिल आशा बहुएँ विधानसभा तक मार्च निकालकर अपनी मांगें सरकार के सामने रखना चाहती थीं। उनका उद्देश्य था कि लोकतांत्रिक तरीके से अपनी आवाज़ को सत्ता के केंद्र तक पहुँचाया जाए। लेकिन जैसे ही आशा बहुएँ विधानसभा की ओर बढ़ने लगीं, पुलिस ने सुरक्षा और कानून-व्यवस्था का हवाला देते हुए उन्हें रास्ते में ही रोक दिया। इसके बाद मौके पर तनाव की स्थिति बन गई, हालांकि स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में रही।
पुलिस द्वारा रोके जाने के बाद भी आशा बहुएँ वहीं डटी रहीं और शांतिपूर्ण ढंग से अपना विरोध दर्ज कराती रहीं। बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया ताकि किसी प्रकार की अव्यवस्था न हो। प्रदर्शन के दौरान आशा बहुएँ अपने अधिकारों, सम्मान और बेहतर कार्य परिस्थितियों की मांग को लेकर लगातार नारेबाजी करती रहीं।
इस पूरे घटनाक्रम के दौरान ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय विद्रोही भी मौके पर मौजूद रहे। स्थिति को संभालने और आंदोलन को शांतिपूर्ण बनाए रखने के लिए जिम्मेदार पुलिस अधिकारी विजय विद्रोही से वार्ता करने में जुट गए। बातचीत के जरिए आशा बहुओं की मांगों, प्रशासन की सीमाओं और आगे की प्रक्रिया पर चर्चा की जा रही है।
आशा बहुओं का कहना है कि वे सरकार से टकराव नहीं चाहतीं, बल्कि संवाद के जरिए अपनी समस्याओं का समाधान चाहती हैं। उनका साफ कहना है कि जब तक उनकी मांगों पर गंभीरता से विचार नहीं किया जाएगा, तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा। वहीं प्रशासन की ओर से भी यह संकेत दिए गए हैं कि बातचीत के जरिए कोई समाधान निकालने का प्रयास किया जाएगा।
कुल मिलाकर लखनऊ में आशा बहुओं का यह आंदोलन एक बार फिर उनके संघर्ष और हक की लड़ाई को सामने लाता है। आने वाले समय में प्रशासन और सरकार इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाती है, इस पर पूरे प्रदेश की निगाहें टिकी हुई हैं।



