सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी: मानहानि को अपराध की श्रेणी से हटाने का समय आ गया।

सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी: मानहानि को अपराध की श्रेणी से हटाने का समय आ गया।
नई दिल्ली।सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मानहानि से जुड़े मामलों पर एक बड़ा संकेत दिया है। अदालत ने साफ कहा कि मौजूदा समय में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया की जिम्मेदारी को देखते हुए यह सही अवसर है कि मानहानि को अपराध की श्रेणी से बाहर किया जाए। अदालत का कहना है कि लोकतंत्र तभी मजबूत हो सकता है, जब नागरिकों और मीडिया को अपनी बात कहने की पूरी आज़ादी मिले।
मामला क्या है पूरा मामला?
यह टिप्पणी जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने सुनवाई के दौरान की। मामला पूर्व जेएनयू प्रोफेसर अमिता सिंह से जुड़ा है, जिन्होंने 2016 में एक मीडिया संस्थान के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया था।
प्रोफेसर का आरोप है कि एक रिपोर्ट में यह झूठा दावा किया गया कि उन्होंने जेएनयू से जुड़ा एक दस्तावेज़ तैयार किया है, जिसमें विश्वविद्यालय को “गैरकानूनी गतिविधियों और आतंकवाद का गढ़” बताया गया। अमिता सिंह का कहना है कि बिना तथ्यों की जांच किए इस खबर को प्रकाशित कर दिया गया, जिससे उनकी सामाजिक छवि और प्रतिष्ठा को गंभीर नुकसान हुआ।
अब तक की कानूनी प्रक्रिया।
2017 : दिल्ली की एक निचली अदालत ने मीडिया संस्थान के संपादक और उप-संपादक को समन भेजा।
2023 : दिल्ली हाईकोर्ट ने यह समन रद्द कर दिया।
2024 : सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला पलट दिया और केस को मजिस्ट्रेट कोर्ट में भेज दिया।
मई 2025 : हाईकोर्ट ने दोबारा समन को वैध माना।
इसके बाद मीडिया संस्थान और डिप्टी एडिटर ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुनवाई के दौरान जस्टिस सुंदरेश ने कहा:
“लोकतांत्रिक समाज में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मूलभूत अधिकार है। यदि हर आलोचना या रिपोर्ट को अपराध मानकर दंडित किया जाएगा तो पत्रकारिता और जन-चर्चा पर गंभीर असर पड़ेगा। अब समय है कि मानहानि को अपराध की श्रेणी से हटाकर इसे केवल दीवानी विवाद (Civil Dispute) के रूप में देखा जाए।”
बहस में कपिल सिब्बल का पक्ष
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट की टिप्पणी से सहमति जताई। उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में नेताओं और सार्वजनिक हस्तियों के खिलाफ बड़ी संख्या में आपराधिक मानहानि के मामले दर्ज हुए हैं। उन्होंने यह भी जोड़ा कि राहुल गांधी का मामला इसका ताजा उदाहरण है, जहां इसी मुद्दे पर बहस हो रही है।
आगे क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर अमिता सिंह को नोटिस जारी करते हुए कहा है कि इस विषय पर व्यापक सुनवाई होगी। अदालत यह भी देखेगी कि क्या मौजूदा भारतीय कानूनों में बदलाव कर मानहानि को केवल सिविल लॉ तक सीमित किया जाना चाहिए।
क्यों है यह फैसला अहम?
पत्रकारिता और मीडिया की स्वतंत्रता को सुरक्षा मिलेगी।
आलोचना और बहस की गुंजाइश बढ़ेगी।
नेताओं, पत्रकारों और आम नागरिकों पर थोपे जाने वाले आपराधिक मुकदमों का बोझ कम होगा।
यह मामला आने वाले समय में भारतीय कानून और लोकतंत्र, दोनों के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हो सकता है।



