अबू आज़मी के बयान पर सियासी बवाल, दंगाइयों पर कार्रवाई को बताया “ज़्यादा सख़्ती”

अबू आज़मी के बयान पर सियासी बवाल, दंगाइयों पर कार्रवाई को बताया “ज़्यादा सख़्ती”
लखनऊ।हाल ही में हुए उपद्रव और पत्थरबाज़ी की घटनाओं पर पुलिस की कार्रवाई को लेकर समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता अबू आज़मी का बयान सामने आया है। उन्होंने कहा कि प्रशासन “ज़रूरत से ज़्यादा सख़्ती” बरत रहा है। इस बयान ने राजनीतिक गलियारों में नई बहस छेड़ दी है।
पुलिस की कार्रवाई बनाम नेताओं की राजनीति
जब उपद्रवियों ने सड़कों पर हिंसा फैलाई, आम लोगों को डराया और तोड़फोड़ की, तब पुलिस ने हालात काबू में लाने के लिए बल प्रयोग किया। कई जगहों पर गिरफ्तारी और तलाशी अभियान चलाए गए। अधिकारियों का तर्क है कि अगर तत्काल और सख़्त कदम न उठाए जाते, तो स्थिति और भयावह हो सकती थी।
लेकिन इसी बीच, अबू आज़मी जैसे नेता कार्रवाई पर सवाल खड़े कर रहे हैं। उनका कहना है कि दंगाइयों पर पुलिस “अनावश्यक सख़्ती” कर रही है। सवाल उठता है कि जब निर्दोष लोग हिंसा का शिकार हो रहे थे, तब उपद्रवियों के अधिकारों की चिंता करने की क्या ज़रूरत थी?
वोट बैंक पर आरोप
विपक्षी दलों और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ऐसे बयानों के पीछे वोट बैंक की राजनीति छिपी है। समाजवादी पार्टी पर पहले भी आरोप लगते रहे हैं कि वह अपने समर्थक वर्ग को साधने के लिए प्रशासनिक कार्रवाई को कठघरे में खड़ा करती है।
यानी जनता की सुरक्षा और कानून व्यवस्था से ज़्यादा, प्राथमिकता “राजनीतिक लाभ” को दी जाती है।
जनता का सवाल
इस पूरे विवाद के बीच आम नागरिकों के मन में बड़ा सवाल है —
क्या नेताओं को उन लोगों की पैरवी करनी चाहिए जिन्होंने समाज में अशांति फैलाई?
या फिर उन्हें पुलिस और प्रशासन का साथ देकर कानून-व्यवस्था मजबूत करने की अपील करनी चाहिए?
साफ है कि अबू आज़मी के बयान ने न सिर्फ सपा की राजनीति को कटघरे में खड़ा किया है, बल्कि यह भी दिखा दिया है कि दंगाइयों और निर्दोषों के बीच खींची गई रेखा पर राजनीति किस तरह खेली जाती है।



